गर न हो जवाब किसी भी सवाल का, किसी भी जवाब में जो सवाल का हमारे।
खमोश जुबा से बेगाना, खामोशियो को धड़कते सीने से अपने फिर लगाएगा।।
हर खामोशियो से टकराकर जवाब हर सवाल का खामोशी से हमारे फिर आएगा।
जनून ए जिंदगी से हो कर के फ़ना, नज़्म तन्हाइयो में फिर ये कोई दुहराएगा।।
लहू से सरोबार है श्याही जो टूटी कलम में हिफ़ाजत से अब भी हमारी।
एक रोज तड़प से उसकी कलेजा आसमां का भी सिमट कर फट जाएगा।।
हर अहसास है जख्मी सा मेरा, जख्म हर लम्हा जो ख़ामोश से चीखते अहसास, अब नासूर हो गए।
नासूर हर जख्मो से अहसास ए दर्द, हर लम्हा एक इंतज़ार से बिन मरहम जो खुले थे जख्म मेरे, ख़ुद ही सील गए।।
रचनाकार एव कवि-नज़्मकार विक्रांत राजलीवाल द्वारा लिखित।
Publishing date
13/05/2018 at 11:37am vikrantrajliwal.wordpress.com
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