कभी कभी कुछ अपने ही, जाने अनजाने में कुछ ऐसा, कहे जाते है
जिसकी पीड़ा, उम्र भर, न चाहते हुए भी बेदर्दी से हमारा दिल दुखा जाती है
और हम खुद को, उस असहनीय पीड़ा के लिए गुन्हेगार या दोषी ठहरा देते है
जब कि हमारा कोई गुनाह या दोष भी नही होता और हम खुद को गुन्हेगार या दोषी मान लेते है…
रचनाकार विक्रांत राजलीवाल द्वारा लिखित।
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