समाया हैं जिस में, सम्पूर्ण मेरा संसार
वो है माँ मेरी का लाड़ और प्यार।
देती हैं दुआ खुश-हाली की हमेशा वो मुझ को,
चाहे कर भी दु भूल से कभी मैं उसका तिरस्कार।।
पाला है बड़े नाज़ से देते हुए मुझ को दुलार।
जी हाँ वो है माँ, देती जो हमेशा मुझ को लाड़ और प्यार।।
बेशक से हो गयी हैं बूढ़ी और जर्जर शरीर से वो अपने।
देखती है फिर भी लाल अपने कि उन्न्ति के वो सपने।।
हर हाल में रहती हैं वो खुश।
अपने बच्चों से ले लेती हैं मांग कर,
हर वो दुख।।
न दुखाना कभी भूल से भी किसी माँ का तुम दिल।
बसता हैं ईष्वर करता है आराधना, वो भी उसकी जहाँ,
वो है माँ का दिल, वो है माँ का दिल,वो है माँ का दिल।।
विक्रांत राजलीवाल द्वारा लिखित।
(Republish at vikrantrajliwal.com)