नमस्कार प्रिय पाठकों एवं मित्रों, आपके अपने मित्र विक्रांत राजलीवाल (स्वयं) जी के द्वारा लिखित उनकी दर्दभरी नज़म दास्ताँ “मासूम मोहब्ब्त।” का रचना कार्य उन्होंने वर्ष 2015-16 में अपनी प्रकाशित अत्यधिक संवेदनशील काव्य पुस्तक “एहसास” एवं अपनी पूर्व प्रकाशित दास्तानों के साथ ही किया था।
“मासूम मोहब्ब्त।” मेरे (विक्रांत राजलीवाल) द्वारा लिखित अब तक कि मेरी समस्त नज़म दस्तानों में से अंतिम दर्दभरी नज़म दास्ताँ है एवं “मासूम मोहब्ब्त।” मेरे ह्रदय में अपना एक ख़ास स्थान रखती है। उम्मीद है आपको मेरी यह दर्दभरी दास्ताँ पसन्द आ आए।
आपका मित्र विक्रांत राजलीवाल।
💏 मासूम मोहब्ब्त। (चौथी दास्ताँ।)
दर्द ए दिल को दे कोई जमीं फिर अपने दिवाने।
ये महकता गुलिस्तां, ये खुला आसमां, ये सारा जहां है तेरा दीवाने।।
दीदार ए सनम जो अधूरी हर मुलाक़ात है उनसे दीवाने।
ये ख़्वाब ए मोहब्ब्त, ये प्यासी सांसे, ये धड़कता दिल है तेरा दीवाने।।
दर्द ए दिल ये दर्द ए मोहब्ब्त अब कम ना हो पाएगी।
हर मोड़ जिंदगी मोहब्ब्त की एक नई दास्ताँ अब दोहराएगी।।
दौड़ रही है श्याही जो बन के लहू बदन में रग-रग के जो तेरे।
हर दर्द ए दिल बन कर मोहब्ब्त जल्द ही जो बरस जाएगा, तन्हा पन्नों पर जिंदगी के जो तेरे।।
रह गई मोहब्ब्त की जो अधूरी तेरी दास्ताँ, दीवाना कोई फिर से उसे जरूर दोहराएगा।
दे देगा शायद अंजाम उसे वो आखरी, दर्द ए दिल दिवाने का शायद फिर फ़ना हो जाएगा।।
तन्हा काली रातों में इत्तफाक से जो आ जाए कभी हसीन ख़्वाब।
आ जाती है तड़पाने दिल वो मेरा, बन कर सुर्ख ग़ुलाबी महकता कोई ख़्वाब।।
एक नही ऐसा कई बार हुआ है।
धड़कते दिल पर जब वार हुस्न का हुआ है।।
बंजर जमीं पर अरमानों की खिलता है जब भी कोई ग़ुलाब।
बन कर सितमगर अपना ही फेक देता है तब वहाँ कोई तेज़ाब।।
बन कर वहाँ कोई साया काला, खिलती मोहब्ब्त का दम घोट देता है।
मार कर ख़ूनी ख़ंजर हर चाल मोहब्ब्त पर वो, बगिया मोहब्ब्त की महकने से पहले ही उजाड़ देता है।।
कभी कभी कुछ अपने भी सितमगर का काम करते है।
जिंदा मौत मोहब्ब्त को दे देने की एक जिंदा मिसाल बनते है।।
हैरान है अब भी दीवाना बेहिंतिया, सब कुछ कैसे वो भांप लेते है।
वो वक़्त, वो हसीन समा, वो मिजाज़ ए मौसम क्या वो नाप लेते है।।
आकर के बीच मे दीवानों के क्यों दीवानों को मार देते है।
मोहब्ब्त की पहली मुलाक़ात को कैसे एक आख़री अंजाम देते है।।
पहली मुलाक़ात को क्यों आख़री बना जाते है।
हसीन उन पलों में कोई हड्डी हलक में अटका जाते है।।
सही करते है या ग़लत वो लोग ये वो ही जानते है।
दम तोड़ती मोहब्ब्त की उस पल मिसाल जहनुम की बनते है।।
जानता नही ये कोई, तड़पा है मोहब्ब्त में दीवाना जो उनकी पल पल।
मिलता है दीदार उनका नसीब से, जला है दीवाना उनके लिए हर पल।।
“एक पल वो हर पल याद आता है।
वो मासूम एहसास, वो मासूम ख्याल,
आज भी बहुत सताता है।”
हम दोनों के उस हालात पर खुद मोहब्ब्त भी रोई थी।
फट गया था कलेजा आसमां का भी, धड़कती धड़कने हमारी जब खोई थी।।
बेदर्द ज़माने को आता नही रहम मोहब्ब्त के दीवानों पर।
हर चाल जो क़ामयाब बेदर्द सी उनकी, नाज है बहुत उन्हें इस बात पर।।
बेदर्द जिंदगी में दिवाने की नसीब से मुलाकाते कुछ हूरों से आई थी।
ऐसा लगा उस लम्हा दीवानों को जैसे बंजर रेगिस्तान में कोई हसीन बाहार आई थी।।
यक़ीन अब भी नही की कैसे मोहब्ब्त अंजाने ही महरबान हो सकती है।
हुस्न ए शबाब वो नादानियां उनकी, कैसे अंजाने ही हसीन कोई सौगात मिल सकती है।।
याद है तक़दीर का आज भी अपनी हर एक वो वाक्या।
हर जीत को हार में बदलते देखने का बेदर्द हर एक वो वाक्या।।
एक नही ऐसा हुआ है कई बार, जीते जी जब मार गया हमे हर एक वो वाक्या।
दिखा कर चाँद हथेली पर कर दिया मज़बूर इस क़दर से की लूट कर ले गया मुझे हर एक वो वाक्या।।
आते है हालात जिंदगी में ऐसे कभी कभी, हो जाता है फ़ना ख़ुद ही जब मोहब्ब्त का वाक्या।
दे कर दर्द ए मोहब्ब्त अधूरा सा कोई, छोड़ जाता है तड़पता जब मोहब्ब्त का वाक्या।।
जख़्मी है दिल मेरा उन अधूरी मुलाकातों से आज तलक।
तन्हा है जिंदगी मेरी उन अधूरे एहसासों से आज तलक।।
मोहब्ब्त जब खुद मोहब्ब्त का इज़हार करने वाली थी।
मोहब्ब्त जब ख़ुद इश्क से मिलने वाली थी।।
फिर क्यों दे कर प्याला जहर का कोई अपना ही हमे, जुदा कर जाता है।
कर के क़त्ल उस मोहब्ब्त की पहली मुलाक़ात का, किसी पँछी की तरह वही पर मंडराता है।।
देख कर साया सितमगर का, वो हुस्न भी घबराता है।
दिल की बात दिल मे दबाए, क़त्ल हर अरमानो का कर वो कहि खो जाता है।।
वो दिलकश खुशनुमा मौसम वो हसीन पल फिर लौट कर ना आए।
खड़ा है दीवाना अब भी वही राह पर, वो हुस्न वाले फिर लौट कर ना आए।।
हक़ीक़त है ज़माने में मिलता है नसीब से किसी हूर का प्यार।
रहता है ज़माने में हर किसी को उनका हमेशा से हमेशा ही इंतज़ार।।
वो चाह, वो जनून दिवाने में भी जाग जाता है।
होता है दीदार जब किसी हूर का तो दिल धड़क जाता है।।
दिल ये पाक-साफ है दिवाने का, शायद कुछ परेशान है।
हर बार की अधूरी उन मुलाकातों से शायद कुछ हैरान है।।
हुआ है एहसास कई बार की दोनों जहां अब पा जाएंगे।
लो वह वक़्त भी आ गया, दीवाना जब मोहब्ब्त को जान जाएंगे।।
हैरान है दीवाना क्यों अंजाम तक नही वो पहुच पाता।
हर बार भरी महफ़िल में कैसे खुद को तन्हा ही है वो पाता।।
वो ज़ालिम सितमगर मोहब्ब्त के क्यों एहसास ए मोहब्ब्त को समझ नही पाते।
ये हसीन लम्हे, ये धड़कते एहसास, जिंदगी में मोहब्ब्त के फुर्सत से ही नसीब होते।।
एक नही ऐसा हुआ है दिवाने कई बार।
कई हूरो को जब एकदम से हुआ है दिवाने से जब प्यार।।
नसीब से होती है मोहब्ब्त ख़ुद मोहब्ब्त पर ए दिवाने महरबान।
हार जाती है दिल दिवाने पर अपना, हूर जब सरेराह कोई,
लुटाती है कदमो पर दिवाने के अपने फिर वो अपनी जान।।
कोई हसीना जब अचानक ही महरबान हो जाती है।
दिखा कर आईना ए मोहब्ब्त निग़ाहों से मदहोश, दिल को थाम लेती है।।
बुला लेती है खुद ही दिवाने को वो अपने करीब।
चाहती है देना मोहब्ब्त की सौगात, बैठा कर वो अपने करीब।।
देखा जो नशीली निग़ाहों में उनकी अजीब सा उनमे एक नशा था।
देख तो रही थी वो नज़रो से दर्द मग़र दिल मे दिवाने के हो रहा था।
एक दम से अज़ीब से जो हालात हो गए।
देख साया एक अजनबी नज़दीक हमारे, वो ख़ामोश हो गए।।
एहसास ए दीवाना खामोशी से अपनी उन्हें कोई इक़रार हो गया।
ऐसा क्यों लगा कि उनको दिवाने से प्यार हो गया।।
कोई कांटा आकर के सीधा धड़कते दिल पर हमेशा पहली मुलाक़ात में क्यों चुभ जाता है।
होना था इक़रार ए मोहब्ब्त उनसे और दीवाना उनका जुदा उनसे हो जाता है।।
जाना है दर्द ए जुदाई को दिवाने ने दिल के करीब से जो बेहिंतिया।
मिलती है वीरान जिंदगी को जीवन कोई ओस बून्द नसीब से जो बेहिंतिया।।
झलक अधूरे अपने प्यार की ना जाने क्यों दे कर एक, हर बार किसी मोड़ पर हुस्न कहि खो जाता है।
क्या ऐसा तो नही ख़ौफ़ किसी साए का उन्हें लेकर दूर हमसे जुदा कर जाता है।।
तड़पता है दीवाना हालात उन पहली हसीन मुलाकातों से, मोहब्ब्त हुई थी हर बार महरबान, फिर क्यों है तन्हा आज भी दीवाना।
नादां है दीवाना आज भी क्यों हो जाता है परेशान, मोहब्ब्त की उन पहली अधूरी मुलाकातों का जान अंजाम ए दिवाने जो ये दीवाना।।
याद है हर एक मुलाकात दिवाने को आज भी…
हा याद है दिवाने को मुलाक़ात एक हुस्न से अपने शबाब पर थी जो उनसे पहली।
हा याद है दिवाने को मोहब्ब्त ख़ुद ही जब अपने अंजाम पर थी जो उनसे पहली।।
बदनसीबी छा जाते है वो बादल काले।
कर के जुदा उनसे एक पल में दूर कहि,
छोड़ आते है हमे वो बादल काले।।
कैसे क़ातिल हसीं उन हूरों से दिवाने की यू ही मुलाक़ात हुई।
पहली ही मुलाक़ात में उनसे मोहब्ब्त की कुछ तो बात हुई।।
जान कर हर बार उन हसीनाओं से दिवाने की जो नज़रे चार हुई।
चाल क़ातिलाना जो दिल के हाथों दिवाने से अपने वो लाचार हुई।।
ये मसला है हुस्न से हूर के उन हसीं मुलाकातों का जो पहली।
ये मसला है हुस्न और इश्क के उस इम्तेहां का जो एक पहेली।।
मसला ये हुस्न और इश्क का जो अभी शुरू ही हुआ था।
सितम ये धडकती धड़कनो पर कहर जो अभी शुरू ही हुआ था।।
हुस्न और इश्क की पहली है वो मुलाक़ात।
चल रहे है तीर ए मोहब्ब्त नज़रो से उनकी मदहोश,
दिल के जो आर पार।।
यक़ीन ए दीवाना, अंजाम ए मोहब्ब्त वो अंजाम अपना आज पा जाएगा।
महरबान है खुद जो मोहब्ब्त, दरिया ए मोहब्ब्त के पार दीवाना, किश्ती मोहब्ब्त की अपनी आज ले जाएगा।।
सितम ए मोहब्ब्त हर बार दिल पर फ़ांस सी कोई चुभ जाती है।
हो जाते है जुदा हर बार दिवाने, कोई अटकान सी बीच मे आ जाती है।।
करते हुए याद दीवाना नाम ए मोहब्ब्त नाम से उनके फिर उन्हें पुकारता है वो।
पर्दा है महीन सा शराफ़त जो एक उनकी, पार उसके आती नही फिर से जो वो।।
गुजर जाए जो घटा मोहब्ब्त से भरी जो, नही लौटती जिंदगी में दोबारा फिर से वो।
चिर दे चाहे दिल या बहादे आँसू फिर दीवाना, मिलती नही मुलाक़ात पहली उनसे फिर वो।।
चाहें कोई प्यार से दिवाने को फिर कभी ना देख पाया हो।
समझता उसे कोई फिर चाहें मोहब्ब्त का साया काला हो।।
हक़ीक़त ये जिंदगी रुक नही सकती किसी हसीना की अधूरी मुलाक़ात में उस अधूरे से प्यार में उसके एक इंतज़ार में।
सितम ये जिंदगी कट नही सकती बेमतलब किसी के इंतज़ार में जो उसकी मोहब्ब्त के उस अधूरे से एक इक़रार में।।
दर्द ए दिल जो दफ़न है धड़कते सीने में, ढूंढता है दीवाना नया फिर कोई मोहब्ब्त का अपने वो एक आसमां।
वीरान ये जिंदगी, तन्हा है एक दीवाने की जो, ढूंढ़ लेगी जल्द ही नया फिर कोई मोहब्ब्त का वो एक गुलिस्तां।।
रखना महफूज़ ख़ुशबू हर अधूरी मुलाकातों के अधूरे अरमानो की अब भी जो महकती।
यक़ीन रख दिखेगा जल्द ही कोई हसीन चाँद, लुटाएगा तुझ पर चाँदनी जो अपनी जान।।
ना हो मायूस ए दिल ए दिवाने, धड़कते दिल मे धड़कने है बहुत जिंदगी में धडकती जो बाकी।
ज़रा देख उठा कर नज़रे अपनी, बगिया मोहब्ब्त में है बहुत महकते गुलाब अब भी जो बाकी।।
ना हो हताश और उदास ए यार दिवाने, ज़माने में है अभी कई और मुकाम तेरे अब भी जो बाकी।
हक़ीक़त है अधूरा हर मुक़ाम बिन मोहब्ब्त के, हर मुकाम है बेमाना सा ए दिवाने, बिन मोहब्ब्त के ज़माने में है जितने अब भी जो बाकी।।
विक्रांत राजलीवाल द्वारा लिखित।
19/09/2019 at 9:50 pm